Friday, 21 August 2020

15-08-2020 (The bank of the Yamuna)

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वो यमुना का किनारा

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दिनेश कुकरेती
ज स्वतंत्रता दिवस है। प्रेस क्लब पहुंचने की जल्दी है, देर से जागने के बावजूद। जल्दी-जल्दी स्नान-ध्यान कर मैं तैयार हुआ और फिर बाइक से प्रेस क्लब की राह पकड़ ली। हालांकि अभी नौ बजने में पांच मिनट बाकी थे। अचानक कुछ दूर जाकर ख्याल आया कि क्यों न बाइक को आफिस की पार्किंग में खडा़ कर आटो से निकला जाए। लेकिन, जब आटो का हाल देखा तो बाइक आफिस के गेट तक ले जाकर फिर प्रेस क्लब की तरफ मोड़ दी। कोई फिजिकल डिस्टेंसिंग नहीं, ठूंस-ठूंस कर सवारियां बिठा रहे हैं आटो वाले और उस पर किराया भी दोगुना। खैर! बामुश्किल 15 मिनट में मैं प्रेस क्लब पहुंच गया। ठीक साढे़ नौ बजे झंडारोहण हुआ, फिर नाश्ता और कुछ देर साथियों के साथ गपशप।
साढे़ दस बजे हमने विकासनगर की तरफ रुख किया। मुझे अभी भी पता नहीं कि हम जा कहां तक रहे हैं। जानकर करना भी क्या था, इसलिए मैंने  पूछने की जरूरत भी नहीं समझी। खैर! रास्तेभर दूनघाटी का सौंदर्य निहारते-निहारते हम हरबर्टपुर चौराहा पार कर गए। कुछ देर में देश के पहले कंजर्वेशन रिजर्व आसन वेटलैंड का मनमोहक नजारा दृष्टिगोचर होने लगा और फिर यमुना का किनारा। वहीं पास में यमुना तट पर है वन विभाग का विश्राम गृह। कितना एकांत और रमणीक स्थल है। बरसात का मौसम होने के बावजूद यमुना काफी दूर बह रही है। तकरीबन दो सौ मीटर। यमुना पार ठीक सामने हिमाचल प्रदेश का पावंटा साहिब नगर का नजारा भी मनमोहक है। 
तय कार्यक्रम के अनुसार हमारे एक साथी पहले ही गेस्ट हाउस पहुंच चुके थे, जो अंदर भोजन की तैयारियों में जुटे हैं। साथ में दो साथी विकासनगर के भी हैं। कुल मिलाकर हम आठ लोग हैं। लाकडाउन के बाद सब एक साथ पहली बार बैठ रहे हैं। वह भी शहर से दूर इस एकांत में। खाने में कड़कनाथ मुर्गा, यमुना की मछली के पकौडे़, मछली की करी, पनीर और दाल का इंतजाम है। पीने में हमें कोई इंट्रेस्ट नहीं। हालांकि, साथियों ने व्हिस्की भी रखी हुई है। बता रहे हैं बेहतरीन क्वालिटी की है। किसी की इच्छा होगी तो ले लेगा।

सभी ने पहले मछली के पकौडे़ और फ्राई कड़कनाथ का मजा लिया और निकल पडे़ पेडो़ं के झुरमुटों के बीच टहलने। कुछ ही दूरी पर आसन बैराज है। वहीं पास में आसन नदी का यमुना के साथ संगम होता है। यमुना यहां पूरी तरह स्वच्छ है। पानी भी बहुत है।  देखकर लगता ही नहीं कि दिल्ली में भी यही यमुना बहती है। बरगद की छांव में यही तुलना करते-करते मेरे दिमाग में कविता की कुछ पंक्तियां कौंधने लगीं, जिन्हें मैं आपकी भी नजर कर रहा हूं- 
 
यमुना तुम यूं ही बहती रहना,
एक दिन फिर हम लौटेंगे,
और निहारेंगे इसी बरगद की छांव से
तुम्हारा लहराता, बलखाता सौंदर्य
तुम्हारे जल का लेंगे आचमन
और तुम किसी चट्टान से टकराकर
गुजर जाना हमें स्पर्श करते हुए
भिगो देना हमारा तन-मन
पर, यमुना तुम यूं ही बहती रहना!।
 
काफी देर हो चुकी थी, सो हम फिर गेस्ट हाउस की ओर चल पडे़। छककर भोजन किया और फिर कुछ देर आराम। अब शाम होने को है, इसलिए सोचा क्यों न आसन वेटलैंड (नमभूमि) को भी करीब से निहार लिया जाए। अक्टूबर से यहां विदेशी परिंदे डेरा डालने लगने हैं और फिर उनकी तादाद हजारों में पहुंच जाती है। तब यहां सैलानियों और पक्षी प्रेमियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इस दौरान वेटलैंड में बोटिंग का अलग ही मजा है। मन कर रहा था रात यहीं रुक लिया जाए। लेकिन, दो-तीन साथी ऐसी हिम्मत नहीं जुटा पाए। कहने लगे पत्नी ने इजाजत नहीं दी है। हालांकि, हम तीन साथी रात को रुकने के मूड से ही निकले थे। खैर! उन तीनों के चक्कर में हमें भी लौटना पडा़। रात नौ बजे हम प्रेस क्लब में थे। मैंने भी बाइक उठाई और निकल पडा़ रूम की ओर। 

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The bank of the Yamuna
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Dinesh Kukreti
Today is Independence Day.  The Press Club is quick to arrive, despite waking up late.  I quickly got ready after taking a bath and meditating and then took the bike to the press club.  However, it was five minutes to nine.  Suddenly something went away and thought why not park the bike in the parking of the office and get out of the auto.  But, when I saw the condition of the auto, the bike was taken to the gate of the office and then turned towards the press club.  There is no physical distancing, the occupants are driving the passengers and the fares are also double.  Well!  In barely 15 minutes I reached the Press Club.  At half past nine, the flag hoisting took place, then breakfast and some late chat with friends.

At half past ten we turned towards Vikasnagar.  I still don't know where we have been.  Knowing what to do, so I did not even think to ask.  Well!  On the way, we crossed the Herbertpur intersection while staring at the beauty of Doon Ghati.  After some time, the country's first Conservation Reserve, Asan Wetland, has a fascinating view and then the bank of Yamuna.  There is a rest house of the forest department on the Yamuna coast nearby.  What a secluded and beautiful place.  Despite the rainy season, the Yamuna is flowing far away.  About 200 meters.  The view of Pavanta Sahib Nagar in Himachal Pradesh, right in front of Yamuna, is also beautiful.


As per the schedule, one of our companions had already reached the guest house, which is busy preparing food inside.  Together the two companions are also from Vikasnagar.  In total we are eight people.  Everyone is sitting together for the first time after the lockdown.  That too in this privacy away from the city.  Kadaknath cock, Yamuna fish dumplings, fish curry, paneer and lentils are available in the food.  We have no interest in drinking.  However, colleagues also keep whiskey.  They are saying that it is of excellent quality.  If someone wishes, he will take it.

Everyone first enjoyed the fish dumplings and fry kadaknath and strolled among the clumps of trees.  The posture barrage is just a short distance away.  At the same time, there is a confluence of the Asan River with the Yamuna nearby.  Yamuna is completely clean here.  There is also a lot of water.  It does not seem to see that this Yamuna flows in Delhi as well.  While doing this comparison in the shade of the banyan, some lines of poetry started flaring in my mind, which I am also looking at you.

Yamuna keep flowing like this,
One day we will return again
And will stare from this banyan shade
Your waving, blushing beauty
Will take your water away
And you hit a rock
Passing us by touch
Soaking our body
But, Yamuna you keep flowing like this!
 




























It was quite late, so we again walked towards the guest house.  Had a meal and then rested for a while.  It is now evening, so why not think that the wetland (Nambhoomi) can also be seen closely.  From October, foreign birds start camping here and then their number reaches thousands.  Then there is a crowd of tourists and bird lovers.  During this time, boating in Wetland is very different.  Wanted to stay here at night.  But, two or three companions could not muster such courage.  The wife started saying that she has not given permission.  However, the three of us fell out of the mood to stay the night.  Well!  We also had to return in the affair of those three.  We were in the press club at nine o'clock at night.  I also picked up the bike and walked towards the room.
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